सोमवार, 21 नवंबर 2011

प्यार स्वतन्त्र नहीं__स्वछंद है |

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प्यार स्वतन्त्र नहीं स्वछंद है. प्यार को विशेष रूप से नहीं, सहजता से अपनाना चाहिए.
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प्यार स्थाई होता है, इसके लिए अपने स्वभाव की स्थितियां संवार के रखनी होती है.
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दो व्यक्तियों के द्वारा स्वयं की और समाज की मर्यादाओं का आदर रखते हुए प्यार करना वैधानिक है   
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प्यार के प्रति भी किसी को आशक्ति नहीं होनी चाहिए, विशवास होना चाहिए.
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प्यार हमें सेक्स की तरफ नहीं ले जाता है हम उसके स्वछंद गुण के कारण भटक कर बहाव में सेक्स की तरफ मार्ग बना लेते है.
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"प्यार" का रिश्ते से कोई सम्बन्ध नहीं होता है. "प्यार" को रिश्ते की मर्यादा युक्त भावना के अनुसार उस रिश्ते में 'प्यार का रंग' (प्यार रूपी रंग) भरा जाता है. तब यह कह सकते है कि "प्यार" को मैंने अपने जीवन में साकार द्रश्य दे दिया.
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"प्यार" जीवन में लुफ्त लेने की चीज नहीं है. यह तो "प्रसाद" होता है.
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आपका स्नेही - यशवंतसिंह 



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