मंगलवार, 1 नवंबर 2011

मर्म

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एक बौद्धिक व्यक्ति एक कठिन रास्ते में एक साधारण बात कहते हैं
कलाकार कठिन बात साधारण तरीके से कला के
द्वारा
से कहता हैं


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ईश्वर की "कृपा के फल" से ही प्रेम हो सकता है 
ना कि बाहरी आकर्षण से 
बाहरी आकर्षण से दो पक्षों के द्वारा आगे बढ़कर बातचीत व्यवहार करते हुए आपस में समझने की प्रक्रिया के अंत से 
प्रेम तक पहुंचा जा सकता है |
 ( ईश्वर की "कृपा का फल" अर्थात "सकारात्मक ऊर्जा")

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"तरुणसागर लुहार है पर इनका प्रेम अपार है"
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आदरणीय मुनि तरुणसागर जी के वचनों में कठोरता होती है | किन्तु कठोरता में छिपी प्रियता बहुत होती है | 

इतनी प्रियता तो बच्चों के माता-पिता में भी नहीं होती है |
( खारी बोल्या मायड़ी मीठा बोल्या लोग )
 
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जिन विचारों से तुम्हे सजाया वो विचार ही तुमने उड़ा दिए
जब हमने उन्हें देखा तो वे दिल में तुम्हारे मिले |

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मित्रत्व - एक साधारण और स्वछंद व्यवहार
 
इस मत से मित्रता का अर्थ है
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एक दुसरे को आपस में सँभालते रहना, सही समझ की तरफ बढ़ाना, सहयोग करना, कमजोर नहीं पड़ने देना, प्रसन्न रखना, आहत ना होने देना, ईमानदारी पूर्वक व्यवहार, पारदर्शिता बढ़ाना, सामंजस्यता बनाए रखना, अच्छे विकासात्मक सुझाव देना आदि
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केवल रिश्ते के '
नाम शब्द' पर नहीं चलना, रुदिवादी -विचार स्वीकार नहीं करना.. आदि.

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इस दुनिया की असली समस्या यह है 

कि मुर्ख व अड़ियल लोग अपने बारे में हमेशा पक्के होते है
(कि वे सही है)
किन्तु बुद्धिमान लोग हमेशा संदेह में रहते है

(कि मैं गलत तो नहीं हूँ ) 
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