गुरुवार, 3 नवंबर 2011

प्यार ! प्यार ! प्यार !__क्या है यह प्यार ?




 

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प्यार को ईश्वर प्रदान करता है.
प्यार ईमानदारी के गर्भ में होता है.
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चेतना से प्यार किया जा सकता है.
प्यार की सीमा नहीं होती, बल्कि मर्यादा होती है.
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पहले घोड़े के ऊपर बैठना सीखो, उसके बाद दौड़ना प्रारम्भ करो.
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प्यार अपनत्व और अथाह विशवास से होता है.
मुझ से करो प्यार. प्यार का वास्तविक अर्थ समझ जाओगे.
प्यार के वास्तविक स्वरूप को व्यवहार से समझा जा सकता है.
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प्रेम और सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का विशेष व्यवहार है.

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प्रेम के चूल्हे बंद नहीं करने चाहिए.
चाहे आपके खाने की दाल पके या ना पके.
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ज्ञान (सरस्वती) को खर्च करो, उतना ही ज्यादा बढती है.
प्रेम को भी खर्च करो, उतना ही बढ़ता है.

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